रायपुर। स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक यात्रा की शुस्र्आत छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मानी जाती है। माना जाता है कि रायपुर आते समय रास्ते में एक मधुमक्खी का छत्ता देखकर उनके मन में अध्यात्म का बीज रोपित हुआ। बाद में रायपुर के दूधाधारी मठ, जैतुसाव मठ और महामाया मंदिर में होने वाले धार्मिक आयोजनों ने अध्यात्म के इस बीज को वृक्ष के रूप में विस्तार दिया।
स्वामी विवेकानंद ने 1877 में रायपुर की धरती पर कदम रखा था। तब उनकी आयु महज 13-14 साल की थी। इतिहासकारों की मानें तो स्वामीजी अपने पिता के साथ नागपुर के रास्ते बैलगाड़ी पर सवार होकर रायपुर पहुंचे थे। देबाशीष चितरंजन राय द्वारा लिखित किताब ‘जर्नी आफ स्वामी विवेकानंद टू रायपुर एंड हिज फर्स्ट ट्रांस” में स्वामीजी को पहली बार होने वाली आध्यात्मिक अनुभूति के बारे में लिखा है।
महाराष्ट्र से छत्तीसगढ़ आते समय रायपुर से 130 किलोमीटर दूर दरेकसा गुफा में मधुमक्खी का छत्ता देखकर उनके मन में पहली बार अध्यात्म का भाव जागा था। वे मधुमक्खियों के साम्राज्य की शुरुआत और अंत के बारे में सोचने लगे थे। इसके पश्चात वे अक्सर अपने पिता से आध्यात्मिक रहस्यों को जानने के लिए चर्चा किया करते थे। रायपुर के दूधाधारी मठ, जैतुसाव मठ और महामाया मंदिर में होने वाले धार्मिक आयोजनों ने उन्हें काफी प्रभावित किया।
डे-भवन में सीखी थी हिंदी
रायपुर स्थित रामकृष्ण मिशन, विवेकानंद आश्रम के सचिव स्वामी सत्यरूपानंद एवं व्यवस्थापक स्वामी देवभावानंद के अनुसार 1877 में स्वामी विवेकानंद अपने पिता विश्वनाथ दत्त के साथ रायपुर आए थे। तब उनका नाम नरेंद्र था। अपने पिता के साथ कोतवाली थाना के पास बूढ़ापारा स्थित डे भवन में रहते थे। उस समय उन्हंे बंगाली भाषा आती थी। रायपुर में रहने के दौरान ही उन्होंने हिंदी भाषा सीखी थी। मात्र दो साल रायपुर में गुजारने के बाद वे पिता के साथ वापस कोलकाता चले गए।
जिस सरोवर में करते थे स्नान वहां स्थापित है सबसे ऊंची प्रतिमा
रायपुर में उनके घर से चंद कदमों की दूरी पर भव्य बूढ़ा तालाब (सरोवर) में वे सुबह स्नान करने जाते थे। वर्तमान में उस सरोवर के बीचोंबीच स्वामी विवेकानंद की ध्यानमग्न अवस्था में सबसे ऊंची (बैठी अवस्था में) 37 फीट की प्रतिमा स्थापित है। अब यह तालाब और आसपास का इलाका पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है।